मैं काया में हूँ, पर काया के बिना भी रह सकता हूँ।
शरीर की पीड़ा को पड़ौसी की पीड़ा मानना।
निमित्त को दोष देना/ रागद्वेष करना भेद-भाव है, भेदविज्ञान होने पर रागद्वेष समाप्त हो जाता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने भेदविज्ञान को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए भेदविज्ञान पर श्रद्वान करना परम आवश्यक है।
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