तीव्र लालसा/ गृद्धता से ग्रसित ही अमर्यादित भोजन करते हैं।
इसमें मांसाहार का दोष लगता है।
जहाँ सामिष भोजन बनता हो, वहाँ दोष रहित रह ही नहीं सकते।
विडंबना ! घर का शुद्ध/ मर्यादित भोजन छोड़कर यह पाप लगा रहे हैं !!
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा- 508)
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4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने भोजन का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में सात्विक भोजन करना ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने भोजन का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में सात्विक भोजन करना ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
‘सामिष भोजन’ ka kya meaning hai, please ?
Nonveg.
Okay.