मन
आचार्य श्री विद्यासागर जी –
“अपना मन,
अपने विषय में
क्यों न सोचता”
कैसी बिडम्बना है !
जो मन अपने सबसे करीब है, उसके बारे में न सोचकर हम प्राय: दूरदराज़ के बारे में ही सोचते/ समझते रहते हैं।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
आचार्य श्री विद्यासागर जी –
“अपना मन,
अपने विषय में
क्यों न सोचता”
कैसी बिडम्बना है !
जो मन अपने सबसे करीब है, उसके बारे में न सोचकर हम प्राय: दूरदराज़ के बारे में ही सोचते/ समझते रहते हैं।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
4 Responses
मुनि श्री वीरसागर महाराज जी का कथन सत्य है कि यह कैसी बिडम्बना है कि जो मन करीब है, उसके बारे में न सोचकर हम प़ाय दूरदराज के बारे में ही सोचते हैं एवं समझते हैं! अतः जीवन का कल्याण करना है तो मन की बात सुनकर अच्छे कार्यो में लगाना अनिवार्य है! इसके अलावा मन को नियंत्रण में रखना चाहिए!
Apne ‘मन’ ke baare me hume kya sochna chahiye ?
अपने मन का भला सोचना चाहिए। उसके लिए शुभ/ अच्छे विचार/ भाव रखने चाहिए।
Okay.