मन की वह योग्यता जिससे अनभूत किये हुये को स्मृति में ला सके।
द्रव्य-मन मनोवर्गणाओं से बनता है।
भाव-मन द्रव्य-मन से,
और भाव-मन काम करता है उपयोग से।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मुनि श्री का कथन सत्य है कि मन की वह योग्यता जिससे अनभूत किये हुए भी स्मृति में ला सकें! द़व्यमन मनोवर्णाओं से बनता है! भावमन द़व्यमन से, और भावमन काम करता है उपयोग से! अतः जीवन में भावमन को नियंत्रित करना चाहिए ताकि मन शुभ कार्य में लग सके!
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मुनि श्री का कथन सत्य है कि मन की वह योग्यता जिससे अनभूत किये हुए भी स्मृति में ला सकें! द़व्यमन मनोवर्णाओं से बनता है! भावमन द़व्यमन से, और भावमन काम करता है उपयोग से! अतः जीवन में भावमन को नियंत्रित करना चाहिए ताकि मन शुभ कार्य में लग सके!