मान तभी आता है, जब हम मान लेते हैं (कि हम बड़े हैं) ।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
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मान- -दूसरो के प्रति नमने की वृत्ति न होना है, अथवा दूसरों के प्रति तिरस्कार रुप भाव होना मान कहलाता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि मान तभी आता है,जब हम मान लेते हैं कि हम दूसरों से बड़े हैं। जीवन में कभी मान का भाव नहीं होना चाहिए एवं कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए।
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मान- -दूसरो के प्रति नमने की वृत्ति न होना है, अथवा दूसरों के प्रति तिरस्कार रुप भाव होना मान कहलाता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि मान तभी आता है,जब हम मान लेते हैं कि हम दूसरों से बड़े हैं। जीवन में कभी मान का भाव नहीं होना चाहिए एवं कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए।