मूलगुण
मूल यानि जड़, जिसके बिना पेड़, न जीवित रह सकता है, ना ही प्रगति कर सकता है।
ऐसे ही श्रावक/ मुनि के लिये मूलगुण आवश्यक हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मूल यानि जड़, जिसके बिना पेड़, न जीवित रह सकता है, ना ही प्रगति कर सकता है।
ऐसे ही श्रावक/ मुनि के लिये मूलगुण आवश्यक हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
4 Responses
मुनि महाराज जी ने मूलगुण की परिभाषा का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः लौकिक क्षेत्र हो या परमार्थ का क्षेत्र हो हर प़ाणी को समझना परम आवश्यक है उसके मूलगुण को ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
‘श्रावक’ के ‘मूलगुण’ kaun-kaunse hain ?
3 मकारों+ रात्रि भोजन+ 5उदम्बरों का त्याग+ पानी छान कर पीना+ जीव दया+ पंच परमेष्टी स्तवन
Okay.