बाह्य मौन —-> मौन रखना;
अंतरंग मौन –> मौन रहना (बोलने के भाव ही न आना)।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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मुनि श्री प़माणसागर महाराज जी ने मौन के उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में कल्याण के लिए श्रावकों को ब़ाम्ह मौन रखना परम आवश्यक है ताकि जीवन में शान्ति रह सकती है।
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मुनि श्री प़माणसागर महाराज जी ने मौन के उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में कल्याण के लिए श्रावकों को ब़ाम्ह मौन रखना परम आवश्यक है ताकि जीवन में शान्ति रह सकती है।