विवेकपूर्ण दया

एक छोटी बच्ची रो रही थी। लेखक के कारण पूछने पर पता लगा कि उसकी गुड़िया खो गयी है। लेखक ने दूसरी गुड़िया खरीद कर दी, पर उसे तो वही गुड़िया चाहिये थी।
अगले दिन लेखक गुड़िया की तरफ से एक पत्र लिख कर लाया कि “मैं दुनिया की सैर करने निकल गयी हूँ, तुमको रोज पत्र लिखा करूंगी।” सिलसिला बहुत दिन चलता रहा।
आखिरी पत्र आया – “कल मैं लौट रही हूँ, पर इतने दिनों में मेरी शक्ल बदल गयी है, तुम पहचान लोगी?
लेखक ने नयी गुडिया खरीद कर बच्ची को दी और उसने खुशी-खुशी स्वीकार कर ली।

(अरविंद)

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One Response

  1. श्री अरविंद जी ने विवेकपूर्ण दया का उदाहरण दिया है वह पूर्ण सत्य है! जैन धर्म में दया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, लेकिन यह भी होना चाहिए कि दया विवेकपूर्ण होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!

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