विषय-भोग
केवल श्रद्धान मात्र से विषयों के प्रति झुकाव रुक नहीं जाता।
सौधर्म इन्द्र/ भरत-चक्रवर्ती क्षायिक सम्यग्दृष्टि हैं/ थे पर एक सैकिंड को भी विषय-भोग छोड़ नहीं पाते।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
केवल श्रद्धान मात्र से विषयों के प्रति झुकाव रुक नहीं जाता।
सौधर्म इन्द्र/ भरत-चक्रवर्ती क्षायिक सम्यग्दृष्टि हैं/ थे पर एक सैकिंड को भी विषय-भोग छोड़ नहीं पाते।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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विषय भोग का मतलब इन्द़ियो द्वारा गलत योग दान करना होता है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि केवल श्रद्वान मात्र से विषयों के प़ति झुकाव रुक नहीं पाता है। क्षायिक सम्यगद्वष्टि भी एक सेकंड भी विषय भोग छोड नहीं पाते हैं। अतः जीवन में सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र का पालन करना चाहिए ताकि विषय भोगों से मुक्ति मिल सकती है।