असाता की उत्कृष्ट स्थिति 30 कोडाकोडी सागर, साता की 15 ।
पर असाता के संक्रमण की अपेक्षा, साता की 30 कोडाकोडी सागर भी हो सकती है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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वेदनीय कर्म का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से जीव सुख दुख का वेदन अर्थात अनुभव करता है । यह दो प्रकार के होते हैं,साता व असाता कर्म । साता में सुख और असाता कर्म में दुख होता है। अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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वेदनीय कर्म का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से जीव सुख दुख का वेदन अर्थात अनुभव करता है । यह दो प्रकार के होते हैं,साता व असाता कर्म । साता में सुख और असाता कर्म में दुख होता है। अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।