वैय्यावृत्ति

आचार्य समन्तभद्र जी ने वैय्यावृत्ति को दान में शायद इसीलिये लिया होगा, क्योंकि उनकी गंभीर बीमारी के समय उनको वैय्यावृत्ति का महत्व समझ आया होगा ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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  1. वैयावृत्य- -गुणीजनो के ऊपर दुःख आ पड़ने पर उसके निवारणार्थ जो सेवा सुश्रुषा की जाती है वह वैयावृत्य नाम का तप है। आचार्य, उपाध्याय, साधु और मनोज्ञ,इन पर विपत्ति आने पर वैयावृत्य करना चाहिए।रोगादि से व्याकुल साधुओं को प़ासुक आहार, औषधि आदि देना तथा उनके अनुकूल वातावरण बना देना यही वैयावृत्य है।यह सोलह कारण भावना में एक भावना है। अतः उक्त कथन सत्य है कि आचार्य समन्तभ़द जी ने वैयावृति को दान में लिया होगा, क्योंकि गंभीर बीमारी के समय उनको वैयावृति का महत्व समझ में आया होगा।

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