असंख्यात पंचकल्याणक करने के बाद भी सौधर्म इन्द्र को वैराग्य नहीं होता ।
क्योंकि वह भी हम लोगों की तरह भोगों में लीन रहता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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उक्त कथन सत्य है कि हजारों बार पंचकल्याणक हो चुके हैं लेकिन सौधर्म इन्द्र तो कई बन चुके हैं लेकिन वैराग्य नहीं होता हैं इसका मुख्य कारण वह कभी वैराग्य की भावना नहीं रखते हैं इससे सिद्ध होता है कि वह लोग भोगों में लिप्त रहते हैं। अतः मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होना है तो वैराग्य की भावना बार बार भाये के तभी उत्पन्न होगा।
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उक्त कथन सत्य है कि हजारों बार पंचकल्याणक हो चुके हैं लेकिन सौधर्म इन्द्र तो कई बन चुके हैं लेकिन वैराग्य नहीं होता हैं इसका मुख्य कारण वह कभी वैराग्य की भावना नहीं रखते हैं इससे सिद्ध होता है कि वह लोग भोगों में लिप्त रहते हैं। अतः मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होना है तो वैराग्य की भावना बार बार भाये के तभी उत्पन्न होगा।