3 प्रकार का –
1. लोक व्यवहार रूप – ये शरीर मेरा है ।
2. अध्यात्म रूप – मैं शरीर नहीं, आत्मा हूँ ।
3. आगम रूप – शरीर से ममत्व हटाओ तब अनुभूति होगी । अध्यात्म रूप सोच में सहायक ।
आर्यिका सरस्वतिभूषण माताजी
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उक्त कथन सत्य है कि व्यवहार तीन प्रकार का होता है। जो शरीर को अपना समझते हैं वह लोक व्यवहार की श्रेणी में आते हैं, जो जानते हैं कि शरीर अपना नहीं है उसको अध्यात्म रुप व्यवहार ही कहते है। जो शरीर में ममत्व हटाने की अनुभूति होगी जो अध्यात्म रुप में सोच में सहायक होती है वह आगम रुप कहा जाता है।
अतः सर्व श्रेष्ठ रुप आगम व्यवहार है जो आत्मा को परमात्मा बनाने में सहायक है।
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उक्त कथन सत्य है कि व्यवहार तीन प्रकार का होता है। जो शरीर को अपना समझते हैं वह लोक व्यवहार की श्रेणी में आते हैं, जो जानते हैं कि शरीर अपना नहीं है उसको अध्यात्म रुप व्यवहार ही कहते है। जो शरीर में ममत्व हटाने की अनुभूति होगी जो अध्यात्म रुप में सोच में सहायक होती है वह आगम रुप कहा जाता है।
अतः सर्व श्रेष्ठ रुप आगम व्यवहार है जो आत्मा को परमात्मा बनाने में सहायक है।