दूसरे शुक्लध्यान से १२वें गुणस्थान(के अंत में) औदारिक शरीर का अभाव तथा परम औदारिक शरीर का प्रादुर्भाव होता है।
इसके अंतर्मुहूर्त काल के प्रत्येक समय में अनंत-अनंत गुणा निगोदिया जीवों का निष्कासन होता रहता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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4 Responses
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने शुक्लध्यान का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! जैन धर्म में छह लेश्याओं का वर्णन मिलता है, जिसमें तीन अशुभ लेश्या होती हैं जबकि तीन लेश्यायें शुभ मानी गई हैं! अन्तिम लेशया शुक्ल है जो मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ बनाती है!
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आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने शुक्लध्यान का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! जैन धर्म में छह लेश्याओं का वर्णन मिलता है, जिसमें तीन अशुभ लेश्या होती हैं जबकि तीन लेश्यायें शुभ मानी गई हैं! अन्तिम लेशया शुक्ल है जो मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ बनाती है!
Can meaning of ‘प्रादुर्भाव’ be explained, please ?
उदय।
Okay.