शुद्ध भोजन
भोजन तो बाह्य क्रिया है तो शुद्ध भोजन को इतना महत्व क्यों दिया जाता है ?
हमको तो अंतरंग मन को शुद्ध करना चाहिए ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते थे जिसका अंतरंग पवित्र होगा वही बाह्य शुद्धि रख सकता है और जो बाह्य शुद्धि रखता है, उसका अंतरंग और पवित्र होता जाता है जैसे स्वादिष्ट मिष्टान्न खाकर मुँह से वाह निकल जाती है।
मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन 12 फ़रवरी)
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शुद्ध भोजन का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए शुद्ध भोजन करना परम आवश्यक है, ताकि मन वचन काय में पवित्रता आती है।