श्रद्धा – संसार जीवों से ठसाठस भरा है। कुछ दृश्य, कुछ अदृश्य।
धर्म – दृश्य की रक्षा और अदृश्य की रक्षा के भाव रखना।
चिंतन
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श्रद्वा का तात्पर्य असीम विश्वास एवं समपर्ण होना है। धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र है अथवा जो जीवों को संसार के दुखों से बचाए।यह दो प़कार के होते हैं, निश्चय एवं व्यवहार धर्म। निश्चय धर्म परिणामों में निर्मलता एवं वीतरागता। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रद्वा जीवों से ठसाठस भरा हुआ, इसमें कुछ द्वश्य एवं कुछ अद्वश्य। धर्म यानी द्वश्य की रक्षा और अद्वश्य की रक्षा के भाव होना। अतः निश्चय धर्म पर श्रद्वान करना एवं व्यवहार धर्म का पुरुषार्थ करना ही जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।
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श्रद्वा का तात्पर्य असीम विश्वास एवं समपर्ण होना है। धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र है अथवा जो जीवों को संसार के दुखों से बचाए।यह दो प़कार के होते हैं, निश्चय एवं व्यवहार धर्म। निश्चय धर्म परिणामों में निर्मलता एवं वीतरागता। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रद्वा जीवों से ठसाठस भरा हुआ, इसमें कुछ द्वश्य एवं कुछ अद्वश्य। धर्म यानी द्वश्य की रक्षा और अद्वश्य की रक्षा के भाव होना। अतः निश्चय धर्म पर श्रद्वान करना एवं व्यवहार धर्म का पुरुषार्थ करना ही जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।