षट-आवश्यक मुनियों के निवृत्ति रूप, सो भावनात्मक।
श्रावकों में प्रवृत्तिरूप सो क्रियात्मक (नोकर्म से जुड़े हुये), पर जघन्य रूप से भावनात्मक तो करें ही वरना ऐसे जीवों को मिथ्यात्वी (आचार्य श्री योगेन्द्रसागर जी – परमार्थ प्रकाश में) कहा है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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4 Responses
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने षट आवश्यक की परिभाषा की गई है वह पूर्ण सत्य है! उदाहरण मुनियों के लिए दिया गया है!
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने षट आवश्यक की परिभाषा की गई है वह पूर्ण सत्य है! उदाहरण मुनियों के लिए दिया गया है!
‘जघन्य रूप’ से भावनात्मक kaise करें ?
जैसे देवपूजा ट्रेन में भाव सहित पढ़ लें।
Okay.