समवाय
जिसके जुड़ने / मिलने पर कार्य की सिद्धी होती है, उसे समवाय कहते हैं ।
इसके पांच अंग हैं और कार्य की सिद्धी के लिये पांचों ही आवश्यक हैं ।
1. – भव्यतव्य (क्षमता)
2. – पुरूषार्थ (महनत)
3. – उपादान (स्वभाव)
4. – निमित्त (बाह्य कारण)
5. – काललब्धि (नियति)
क्षु. श्री वर्णी जी
पुरूषार्थ और निमित्त के लिये वर्तमान में पुरूषार्थ किया जाता है,
जबकि बाकी तीन, Past के पुरूषार्थ से मिलते हैं ।
(यह वर्णी जी का चिंतन है, आगम में इसका उल्लेख नहीं मिलता – पं. रतनलाल बैनाड़ा जी)