आत्मा का कर्मों के साथ घनिष्ठ सम्बंध होता है इसीलिये दोनों सूक्ष्म साथ साथ जाते हैं।
शरीर के साथ घनिष्ठ नहीं, शरीर स्थूल आत्मा सूक्ष्म है, इसलिये अलग हो जाते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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जीवन में सम्बन्ध दूध और पानी की तरह होना चाहिए, जिसमें दूध गर्म करने पर पानी नहीं रहता है, लेकिन उसके उबालने पर पानी के कुछ छींटे देना पड़ता है। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि आत्मा का कर्मों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, इसलिए दोनों सूक्ष्म साथ साथ जाते हैं, लेकिन शरीर के साथ घनिष्ठ नहीं, इसमें शरीर स्थूल एवं आत्मा सूक्ष्म है, इसलिए अलग हो जाते हैं।
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जीवन में सम्बन्ध दूध और पानी की तरह होना चाहिए, जिसमें दूध गर्म करने पर पानी नहीं रहता है, लेकिन उसके उबालने पर पानी के कुछ छींटे देना पड़ता है। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि आत्मा का कर्मों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, इसलिए दोनों सूक्ष्म साथ साथ जाते हैं, लेकिन शरीर के साथ घनिष्ठ नहीं, इसमें शरीर स्थूल एवं आत्मा सूक्ष्म है, इसलिए अलग हो जाते हैं।