संसारी/ मिथ्यादृष्टि मोक्षमार्ग में दु:ख मानता है (संसार में सुख की खोज में लगा रहता है) इसलिये दु:खी रहता है।
साधु/ सम्यग्दृष्टि मोक्षमार्ग में सुख मानता है इसलिये सुखी रहता है।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि संसारी, मिथ्यादृष्टि मोक्ष मार्ग में दुःख मानता है, और संसार में सुख की खोज में लगा रहता है, इसलिए दुखी रहता है। जबकि साधु सम्यग्द्वष्टि मोक्षमार्ग में ख़ुश रहता है, इसलिए सुख मानता है। अतः मनुष्य को सम्यग्दर्शन में समय लगाना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि संसारी, मिथ्यादृष्टि मोक्ष मार्ग में दुःख मानता है, और संसार में सुख की खोज में लगा रहता है, इसलिए दुखी रहता है। जबकि साधु सम्यग्द्वष्टि मोक्षमार्ग में ख़ुश रहता है, इसलिए सुख मानता है। अतः मनुष्य को सम्यग्दर्शन में समय लगाना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।