सल्लेखना के समय केवलज्ञान नहीं होता क्योंकि सल्लेखना संकल्पपूर्वक ली जाती है ।
लेकिन सल्लेखना वाले कम से कम 3 भव में मोक्ष जा सकते हैं (अधिकतम 7-8 भव में) ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मोक्ष का तात्पर्य समस्त कर्मों से रहित आत्मा की परम विशुद्व अवस्था होती है।
मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि सल्लेखना के समय केवल-ज्ञान नहीं होता क्योंकि यह संकल्प पूर्वक ली जाती है। यह कथन भी सत्य है कि सल्लेखना वाले कम से कम तीन भव में मोक्ष जा सकते हैं और सात या आठ भव में भी हो सकता है।
अतः मनुष्य और साधु को भी कम-से-कम सल्लखेना के भाव होना परमावश्यक है, ताकि मोक्ष मार्ग प़शस्त हो सकता है।
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मोक्ष का तात्पर्य समस्त कर्मों से रहित आत्मा की परम विशुद्व अवस्था होती है।
मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि सल्लेखना के समय केवल-ज्ञान नहीं होता क्योंकि यह संकल्प पूर्वक ली जाती है। यह कथन भी सत्य है कि सल्लेखना वाले कम से कम तीन भव में मोक्ष जा सकते हैं और सात या आठ भव में भी हो सकता है।
अतः मनुष्य और साधु को भी कम-से-कम सल्लखेना के भाव होना परमावश्यक है, ताकि मोक्ष मार्ग प़शस्त हो सकता है।