साधुसमाधि / वैय्यावृत्य करण

साधुसमाधि –> आपत्ति/ विघ्न दूर करके समाधि (ध्यान की एकाग्रता) में स्थित कराना। रत्नत्रय में व्यवधान दूर करने की भावना। अन्य समय में ऐसा व्यवधान न आये,  ऐसी भावना भाना, जैसे विष्णु कुमार जी ने किया था।

वैय्यावृत्य करण –> लम्बे समय के रोगादि दूर करना जैसे श्री कृष्ण ने मुनि के लिये औषधि दान करके तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया था।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 6/24)

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