स्व-पर

वस्तु तो “पर” है ही, तेरे भाव भी “पर” हैं क्योंकि वे कर्माधीन हैं।
फिर मेरा क्या है ?
सहज-स्वभाव* ही तेरा है।…. (समयसार जी)

आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी(23 अक्टूबर)

* राग-द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ से रहित।

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One Response

  1. आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने स्व -पर को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः स्व ही अपना है, यानी आत्मा ही है, इसके अलावा कुछ नहीं अपना‌।

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