1. आत्मज्ञान – आत्मा का ज्ञान,
2. आत्मध्यान – आत्मा का चिंतन,
3. आत्मकल्याण – आत्मा के कल्याण हेतु रत्नत्रय धारण करना !
क्षु. श्री ध्यानसागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि आत्मज्ञ होने में प़थम आत्मा का ज्ञान, दूसरे में चिंतन एवं तीसरा आत्म कल्याण के लिए रत्नत्रय धारण करना होता है।अतः आत्मज्ञ होने के लिए उपरोक्त तीनो का धारण करना होगा।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि आत्मज्ञ होने में प़थम आत्मा का ज्ञान, दूसरे में चिंतन एवं तीसरा आत्म कल्याण के लिए रत्नत्रय धारण करना होता है।अतः आत्मज्ञ होने के लिए उपरोक्त तीनो का धारण करना होगा।