आत्मा / भगवान
जो शरीर में आत्मा नहीं देख पाते, वे ही मूर्ति में भगवान नहीं देख पाते ।
और वे ही शरीर/भोगों को पुष्ट करने में लगे रहते हैं ।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
जो शरीर में आत्मा नहीं देख पाते, वे ही मूर्ति में भगवान नहीं देख पाते ।
और वे ही शरीर/भोगों को पुष्ट करने में लगे रहते हैं ।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
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आत्मा- – जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि के गुणों में वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है, इसका कोई स्वरुप नहीं होता हैं। भगवान् जिसे केवलज्ञान प्राप्त होता है उसे कहते हैं।
अतः जो लोग शरीर में आत्मा को नहीं पहिचानते है, वें ही लोग मूर्ति में भगवान नहीं देख पाते हैं,यह लोग अपने शरीर को पुष्ट करने या भोगों को भी पुष्ट करते रहते हैं।