कर्मबंध
श्री समयसार जी के अनुसार “प्रज्ञाप्राध” (उपयोग + अपराध) से ही कर्मबंध होते हैं ।
जैसे हीरा देखा, हड़़पने के भाव/ डॉक्टर ने सेवा की जगह फीस पर दृष्टि रखी/ प्राकृतिक नियमावली के विरुद्ध जाना जैसे भोजन में गायों को माँस खिलाने से cow mad disease बीमारी पूरे संसार में (गलती कुछ ने की, संगति करने वाले भी बीमार) ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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कर्म का तात्पर्य मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करना है। कर्म के द्वारा ही संसार में भटकता है। ये तीन प्रकार के होते हैं द़व्य कर्म, भाव कर्म और नोकर्म। इनके कारण कर्म बंध होते रहते हैं। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन में जो उदाहरण दिए गए हैं वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में अच्छे कर्मों के भाव होना आवश्यक है ताकि जीवन में कल्याण हो सकता है।