ज्ञानीजन, कर्कशा पत्नि/दुर्जन पुत्र का नाम ही कर्म रख लेते हैं ।
पापोदय को काटने में सहजता हो जाती है ।
Share this on...
One Response
कर्म का मतलब जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब उसकी क़िया या कर्म है। कर्म के द्वारा जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है। यह भी तीन प्रकार के होते हैं द़व्य कर्म,भाव कर्म और नो कर्म। अतः उक्त कथन सत्य है ज्ञानी जन,कर्कशा पत्नि या दुर्जन पुत्र का नाम ही कर्म रख लेते हैं। इससे पापोदय को काटने में सहजता अवश्य होती है।
One Response
कर्म का मतलब जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब उसकी क़िया या कर्म है। कर्म के द्वारा जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है। यह भी तीन प्रकार के होते हैं द़व्य कर्म,भाव कर्म और नो कर्म। अतः उक्त कथन सत्य है ज्ञानी जन,कर्कशा पत्नि या दुर्जन पुत्र का नाम ही कर्म रख लेते हैं। इससे पापोदय को काटने में सहजता अवश्य होती है।