कर्म अपना फल द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार तो देते ही हैं पर अनुकूल/प्रतिकूल द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव भी देते हैं।
सुख-दु:ख ही कर्मों का फल नहीं, 7 प्रकार के और भी तो कर्म हैं!
उच्च/नीच कर्म, उच्च/नीच गोत्र के उदय से होते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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कर्म का तात्पर्य जीवन में मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है,यह सब क़िया या कर्म है।कर्म के द्वारा संसार में भटक रहे हैं।कर्म तीन प्रकार के होते हैं, द़व्य,भाव एवं नो कर्म। उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में अच्छे कर्म करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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कर्म का तात्पर्य जीवन में मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है,यह सब क़िया या कर्म है।कर्म के द्वारा संसार में भटक रहे हैं।कर्म तीन प्रकार के होते हैं, द़व्य,भाव एवं नो कर्म। उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में अच्छे कर्म करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।