पुत्र/पुत्री के पैदा होने पर प्रथम दर्शन गंधोदक लगाकर ही करें, माँ को भी लगायें ।
त्रियंच (जिनके सदैव सूतक रहता है) को भी लगाया जाता है (कोढ़ी को भी) ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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गंधोदक में भगवान् के सिर के ऊपर से प़ासूक जल डालते हैं,वह हर एक के लिए बहुत आवश्यक है,इसको लगाने से मानसिक शान्ति मिलती हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि पुत्र पुत्री के पैदा होने पर प़थम दर्शन गंधोदक लगा कर ही करना चाहिए और माता को भी लगावें । इसके अतिरिक्त तिर्यंन्च जो हमेशा सूतक में ही रहते हैं उनको भी और कोढ़ी को भी लगा सकते हैं।
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गंधोदक में भगवान् के सिर के ऊपर से प़ासूक जल डालते हैं,वह हर एक के लिए बहुत आवश्यक है,इसको लगाने से मानसिक शान्ति मिलती हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि पुत्र पुत्री के पैदा होने पर प़थम दर्शन गंधोदक लगा कर ही करना चाहिए और माता को भी लगावें । इसके अतिरिक्त तिर्यंन्च जो हमेशा सूतक में ही रहते हैं उनको भी और कोढ़ी को भी लगा सकते हैं।