भाव-कर्म जड़ हैं पर वे चेतन को प्रभावित/आकर्षित कर लेते हैं।
चेतन प्रभावित हो या ना हो/कम आकर्षित हो या ज्यादा, यह चेतन का पुरुषार्थ/स्वभाव है ।
जड़ कर्म पापी नहीं, चेतन पापी हो सकता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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चेतन का तात्पर्य आत्मा जो ज्ञान दर्शन मय होती है।यह तीन प्रकार के होते हैं, ज्ञान,कर्म और भाव चेतना।
उपरोक्त कथन सत्य है कि जड़ भाव कर्म है,वह चेतन को प्रभावित एवं आकर्षित कर लेते हैं। जबकि चेतन प़भावित हो या न हो, इसमें कम ज्यादा होना यह चेतन का पुरुषार्थ, स्वभाव होता है। अतः जड़ कर्म पापी नहीं लेकिन चेतन पापी हो सकता है।
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चेतन का तात्पर्य आत्मा जो ज्ञान दर्शन मय होती है।यह तीन प्रकार के होते हैं, ज्ञान,कर्म और भाव चेतना।
उपरोक्त कथन सत्य है कि जड़ भाव कर्म है,वह चेतन को प्रभावित एवं आकर्षित कर लेते हैं। जबकि चेतन प़भावित हो या न हो, इसमें कम ज्यादा होना यह चेतन का पुरुषार्थ, स्वभाव होता है। अतः जड़ कर्म पापी नहीं लेकिन चेतन पापी हो सकता है।