दिव्यध्वनि
दिव्यध्वनि एक बार में 6 घड़ी तक (2’24”) खिरती है ।
श्री जयधवला के अनुसार – नित्य 3 बार तथा जीवकांड जी के अनुसार – 4 बार ।
कम से कम हम भगवान से मौन रहकर 2 घड़ी(48″) तो जुड़ा करें ।
बैठ अकेला दो घड़ी तू, भगवन के गुण गाया कर;
मन मंदिर पै जियरा तू, झाडू रोज लगाया कर ।
वाणी सुनने (स्वाध्याय) का उद्देश्य – भ्रम दूर करना ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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दिव्यध्वनी का तात्पर्य भगवान् की वाणी को सुनकर उसको अमल करना आवश्यक है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि बैठ अकेला दो घड़ी, भगवन् के गुण गाया कर, और अपने मन मन्दिर में हृदय लगाकर झाड़ू यानी अपने विकारों को निकालने के लिए वाणी सुनना यानी स्वाध्याय करने का उद्देश्य बनाना परम आवश्यक है ताकि जीवन में जो भ़म है उसे दूर किया जा सकता है।