पर

घर, कार आदि तो मैंने अपने पैसों से, अपने/अपनों के लिये खरीदा है तो “पर” कैसे ?
जिस धन से खरीदा, जिस शरीर, जिन रिश्तेदारों के लिये खरीदा वह भी तो “पर” है ना!

मुनि श्री विनिश्चयसागर जी

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One Response

  1. यह कथन सत्य है कि जीवन जो कुछ भी है जैसे धन, मकान एवं स्वयं का शरीर आदि पर का है, मरण के बाद भी अपना कुछ नहीं रहता है। जो अपनी आत्मा को पहिचान कर लेता है उसके लिए हर चीज “पर” ही लगेगी। जीवन में हर चीज को “पर” समझने लगेगा तभी जीवन का कल्याण होगा।

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