अरहंत पद पुण्य के क्षय से नहीं, पुण्य का फल है;
जो 13वें गुणस्थान में उदय में आता है ।
तथा पाप के क्षय से (घातिया) मिलता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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पुण्य- – जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है उसे पुण्य कहते हैं अथवा जीव के दया, दान, पूजा आदि रुप शुभ परिणाम को कहते हैं। अतः यह कथन सत्य है कि अरहंत पद पुण्य के क्षय से नहीं बल्कि पुण्य का फल है,जो 13वें गुणस्थान में उदय में आता है तथा पाप के क्षय से घातिआ समाप्त है ।
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पुण्य- – जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है उसे पुण्य कहते हैं अथवा जीव के दया, दान, पूजा आदि रुप शुभ परिणाम को कहते हैं। अतः यह कथन सत्य है कि अरहंत पद पुण्य के क्षय से नहीं बल्कि पुण्य का फल है,जो 13वें गुणस्थान में उदय में आता है तथा पाप के क्षय से घातिआ समाप्त है ।