बुद्धि/अबुद्धि पूर्वक

अबुद्धि पूर्वक अप्रमत्त क्रियायें हो सकती हैं पर प्रमत्त, बुद्धि पूर्वक ही ।
सम्यग्दर्शन जाग्रत अवस्था में ही, बुद्धि पूर्वक ही ।
मोक्षमार्ग पर चलना बुद्धिपूर्वक ही ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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4 Responses

  1. अप़मत्त और प़मत्त संयत दोनों क़ियाये साधुओं के लिए होती है, इसमें प़माद रहित और रत्नत्रय युक्त होकर निरंतर आत्म ध्यान में लीन रहना अप़मत्त संयम कहलाते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अबुद्वि पूर्वक अप़मत्त क़ियाये हो सकती है पर प़मत्त, बुद्धि पूर्वक ही इसलिए सम्यग्दर्शन जाग़त अवस्था में ही बुद्धि पूर्वक ही पर मोक्ष मार्ग पर चलना बुद्धि पूर्वक होना चाहिए।

    1. ऊपर के गुणस्थानों/ शुक्ल ध्यान में बुद्धि का role कम होता चला जाता है ।

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