आज गृहस्थ तथा साधु दोनों ही भाग्य भरोसे जी रहे हैं ।
फ़र्क सिर्फ इतना है कि गृहस्थ रो रो कर जीते हैं, साधु हँस हँस कर ।
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यह कथन सत्य है कि सभी प़ाणी भाग्य भरोसे जीवन जी रहा है लेकिन ग़हस्थ अपने भाग्य अथवा कर्मो को बदलने का पुरुषार्थ नही करते हैं, इसलिये रोते रोते जी रहे हैं।जब की साधु धर्म पुरुषार्थ करते हैं, जिसके कारण जीवन हँस हँस कर जीते हैं।
अतः जीवन में भाग्य बदलने के लिए अच्छे कर्मो को करना आवश्यक है, बिना पुरुषार्थ भाग्य बदल नहीं सकते हैं।
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यह कथन सत्य है कि सभी प़ाणी भाग्य भरोसे जीवन जी रहा है लेकिन ग़हस्थ अपने भाग्य अथवा कर्मो को बदलने का पुरुषार्थ नही करते हैं, इसलिये रोते रोते जी रहे हैं।जब की साधु धर्म पुरुषार्थ करते हैं, जिसके कारण जीवन हँस हँस कर जीते हैं।
अतः जीवन में भाग्य बदलने के लिए अच्छे कर्मो को करना आवश्यक है, बिना पुरुषार्थ भाग्य बदल नहीं सकते हैं।