द्रव्य मन – आठ पंखुड़ी वाला, हृदय स्थल पर।
भाव मन – ज्ञानात्मक, स्थान निश्चित नहीं, परिणाम निश्चित नहीं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मन का तात्पर्य जिसमें नाना प्रकार के विकल्प जाल होते हैं,अथवा गुण दोष का विचार व स्मरण आदि कराने का कार्य मन का है।यह दो प्रकार के होते हैं द़व्य मन और भाव मन। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि द़व्य मन का मतलब आठ पंखुड़ी वाला,जो हृदय स्थल पर है। इसके अलावा भाव मन का मतलब ज्ञानात्मक, स्थान निश्चित नहीं और परिणाम भी निश्चित नहीं।
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मन का तात्पर्य जिसमें नाना प्रकार के विकल्प जाल होते हैं,अथवा गुण दोष का विचार व स्मरण आदि कराने का कार्य मन का है।यह दो प्रकार के होते हैं द़व्य मन और भाव मन। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि द़व्य मन का मतलब आठ पंखुड़ी वाला,जो हृदय स्थल पर है। इसके अलावा भाव मन का मतलब ज्ञानात्मक, स्थान निश्चित नहीं और परिणाम भी निश्चित नहीं।