यदि मूर्ति पैरों में गिर जाये तो उसकी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है, उसे दुबारा प्रतिष्ठित कराना चाहिये ।
मूर्तियों का अतिशय/Energy कम ज्यादा भी होती रहती है ।
मुनि श्री क्षमासागर जी
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प़तिष्ठा- – मंत्रोच्चारण आदि विधि विधान पूर्वक रत्न, पाषाण आदि से निर्मित वीतराग प़तिमा में अर्हन्त आदि की स्थापना करना प़तिष्ठा कहलाती है।
प्रतिमा- – अर्हन्त आदि की वीतराग मूर्ति को प़तिमा कहते हैं,यह काठ,धातु,रत्न आदि से निर्मित होती हैं।
यह कथन सत्य है कि यदि मूर्ति पैरों में गिर जाती है तो उसकी प़तिष्ठा समाप्त हो जाती है, अतः दुबारा प़तिष्ठित कराना चाहिए। यदि प़तिष्ठा नहीं करते हैं तो उन मूर्तियों का अतिशय कम ज्यादा भी होती रहती हैं।
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प़तिष्ठा- – मंत्रोच्चारण आदि विधि विधान पूर्वक रत्न, पाषाण आदि से निर्मित वीतराग प़तिमा में अर्हन्त आदि की स्थापना करना प़तिष्ठा कहलाती है।
प्रतिमा- – अर्हन्त आदि की वीतराग मूर्ति को प़तिमा कहते हैं,यह काठ,धातु,रत्न आदि से निर्मित होती हैं।
यह कथन सत्य है कि यदि मूर्ति पैरों में गिर जाती है तो उसकी प़तिष्ठा समाप्त हो जाती है, अतः दुबारा प़तिष्ठित कराना चाहिए। यदि प़तिष्ठा नहीं करते हैं तो उन मूर्तियों का अतिशय कम ज्यादा भी होती रहती हैं।