मोक्ष यानि निराकुलता ।
फल – असीम सुख ।।
तो फिर मोक्ष, आकुलता तथा दु:खी भावों से कैसे प्राप्त हो सकता है !
चाहे वे क्रियायें/भाव सांसारिक हों या धार्मिक !
चिंतन
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मोक्ष कर्मों से रहित आत्मा को परम विशुद्ध अवस्था का नाम है।आत्मा कर्म कंलक और शरीर को अपने से सर्वथा जुदा कर देता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि मोक्ष यानी निराकुलता है, जबकि फल असीम सुख है। तो फिर मोक्ष, आकुलता तथा दुःखी भावों से कैसे प्राप्त हो सकता है। चाहे वे क़ियायें/ भाव संसारिक हों या धार्मिक हों।
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मोक्ष कर्मों से रहित आत्मा को परम विशुद्ध अवस्था का नाम है।आत्मा कर्म कंलक और शरीर को अपने से सर्वथा जुदा कर देता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि मोक्ष यानी निराकुलता है, जबकि फल असीम सुख है। तो फिर मोक्ष, आकुलता तथा दुःखी भावों से कैसे प्राप्त हो सकता है। चाहे वे क़ियायें/ भाव संसारिक हों या धार्मिक हों।