अपने और अपनों से मोह में इतना दोष नहीं… सीता भी तो राम से बहुत मोह करतीं थीं, तभी तो स्वर्ग से राम की तपस्या भंग करने आयीं थीं ।
परन्तु दूसरों और दूसरों की वस्तुओं से मोह में महादोष है ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
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मोह का मतलब किसी जीव और वस्तुओं में आकर्षण रखना होता है,यह मनुष्य के लिए बहुत कमजोरी है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि अपने और अपनों से मोह में इतना दोष नहीं है लेकिन दूसरों और दूसरों की वस्तुओं से मोह रखना महादोष होता है।
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मोह का मतलब किसी जीव और वस्तुओं में आकर्षण रखना होता है,यह मनुष्य के लिए बहुत कमजोरी है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि अपने और अपनों से मोह में इतना दोष नहीं है लेकिन दूसरों और दूसरों की वस्तुओं से मोह रखना महादोष होता है।