पंक नहीं पंकज बनूँ,
मुक्ता बनूँ न सीप,
दीप बनूँ जलता रहूँ,
गुरु पद पद्म समीप.
आचार्य श्री विद्या सागर जी
———————————————– विपरीतता…
भोगभूमि में साधु नहीं, तो डाकू भी नहीं ।
जहाँ सिद्ध, वहीं निगोदिया ।
सारे द्रव्य, एक क्षेत्रावगाह ।
मुनि श्री महासागर जी
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6 Responses
भोगभूमि का तात्पर्य जहां कृषि आदि कार्य किए बिना दस प्रकार के कल्पवृक्ष से प्राप्त भोग उपयोग की सामग्री के द्वारा मनुष्यों की जीवका चलती है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि भोग भूमि में साधु नहीं और डाकू भी नहीं रहते हैं। इसलिए जहां सिद्ध वही निगोदिया है।सारे द़व्य एक क्षैत्रावाहक हैं।
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भोगभूमि का तात्पर्य जहां कृषि आदि कार्य किए बिना दस प्रकार के कल्पवृक्ष से प्राप्त भोग उपयोग की सामग्री के द्वारा मनुष्यों की जीवका चलती है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि भोग भूमि में साधु नहीं और डाकू भी नहीं रहते हैं। इसलिए जहां सिद्ध वही निगोदिया है।सारे द़व्य एक क्षैत्रावाहक हैं।
“पंक” ka kya meaning hai, please?
पंक = कीचड़
“मुक्ता” ka meaning bhi clarify kariye, please?
मुक्ता = Precious stone.
Okay.