कहते हैं – कैंचुली उतारने से सर्प विषहीन हो जाता है, हालाँकि विष तो दांतों में होता है ।
वैभव में पाप नहीं है, पर वैभव छोड़ने पर हम पाप मुक्त हो जाते हैं ।
आचार्य श्री वसुनंदी जी
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पाप का मतलब जो आत्मा को शुभ से बचाए अथवा दूसरे के प्रति अशुभ परिणाम होना ही पाप है।यह पांच प्रकार के होते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि वैभव में पाप नहीं है,पर वैभव छोड़ने पर पाप मुक्त हो जाते हैं,जिस प्रकार कैंचली उतारने से सर्प विषहीन हो जाता है हालांकि विष तो दांतों में होता है।
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पाप का मतलब जो आत्मा को शुभ से बचाए अथवा दूसरे के प्रति अशुभ परिणाम होना ही पाप है।यह पांच प्रकार के होते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि वैभव में पाप नहीं है,पर वैभव छोड़ने पर पाप मुक्त हो जाते हैं,जिस प्रकार कैंचली उतारने से सर्प विषहीन हो जाता है हालांकि विष तो दांतों में होता है।