1. मिथ्या-शल्य = मिथ्यात्व को जानते हुये भी छोड़ ना पाना
2. माया-शल्य = अंदर कपट, बाहर सरलता का नाटक
3. निदान-शल्य = भोगों का चिंतन/लिप्त रहना
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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शल्य का मतलब पीड़ा देने वाली वस्तु है,यह तीन प्रकार की होती हैं, माया ,मिथ्या ओर निदान शल्य।
अतः उक्त कथन सत्य है कि मिथ्या शल्य जो मिथ्यात्व को जानते हुए भी छोड़ न पाना।
माया शल्य का मतलब अंदर कपट जबकि बाहर सरलता का नाटक होता है।
निदान शल्य का मतलब भोगों का चिंतन और लिप्त रहना होता है। अतः इन तीनों शल्य का निराकरण करने पर ही कल्याण हो सकता है।
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शल्य का मतलब पीड़ा देने वाली वस्तु है,यह तीन प्रकार की होती हैं, माया ,मिथ्या ओर निदान शल्य।
अतः उक्त कथन सत्य है कि मिथ्या शल्य जो मिथ्यात्व को जानते हुए भी छोड़ न पाना।
माया शल्य का मतलब अंदर कपट जबकि बाहर सरलता का नाटक होता है।
निदान शल्य का मतलब भोगों का चिंतन और लिप्त रहना होता है। अतः इन तीनों शल्य का निराकरण करने पर ही कल्याण हो सकता है।