श्रावक का पुण्य बहुत ताकतवर होता है …
1) उसके पुण्य से तीर्थंकर भी खिंचे चले आते हैं (आहार के लिये) ,
सौधर्म इन्द्र में भी यह शक्ति नहीं है ।
2) आहार के समय श्रावक का हाथ तीर्थंकर के ऊपर होता है ,
यह आहार तीर्थंकर के केवलज्ञान में निमित्त बनता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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One Response
पुण्य-जो आत्मा को पवित्र बनाता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है, अथवा जीव के दया, दान, पूजा आदि रुप शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं। इसके अलावा पुण्य सर्वथा हेय नहीं जबकि श्रावकों के लिए पापानुबंधी हेय है पर पुण्यानचबंधी उपादेय है। अतः यह कथन सत्य है कि श्रावकों का पुण्य बहुत ताकतवर होता है। अतः उसके पुण्य से तीर्थंकर भी खिंचे चले आते हैं वह भी आहार के लिए एवं सोधर्म इन्द़ में वह शक्ति नहीं होती है। दूसरा आहार के समय श्रावक का हाथ तीर्थंकर के ऊपर होता है। उक्त आहार तीर्थंकर के केवल ज्ञान में निमित्त बनता है।
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पुण्य-जो आत्मा को पवित्र बनाता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है, अथवा जीव के दया, दान, पूजा आदि रुप शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं। इसके अलावा पुण्य सर्वथा हेय नहीं जबकि श्रावकों के लिए पापानुबंधी हेय है पर पुण्यानचबंधी उपादेय है। अतः यह कथन सत्य है कि श्रावकों का पुण्य बहुत ताकतवर होता है। अतः उसके पुण्य से तीर्थंकर भी खिंचे चले आते हैं वह भी आहार के लिए एवं सोधर्म इन्द़ में वह शक्ति नहीं होती है। दूसरा आहार के समय श्रावक का हाथ तीर्थंकर के ऊपर होता है। उक्त आहार तीर्थंकर के केवल ज्ञान में निमित्त बनता है।