संयम
वृतियों को अवृतियों से नहीं पढ़ना चाहिये वरना वृतियों में संयम के प्रति रुचि कम होने लगती है।
(पं पन्नालाल जी को षटखंडागम कंठस्थ था, पर आचार्य श्री ने ब्रह्मचारियों को उनसे तब पढ़वाया, जब उन्होंने 7 प्रतिमायें ले लीं)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
वृतियों को अवृतियों से नहीं पढ़ना चाहिये वरना वृतियों में संयम के प्रति रुचि कम होने लगती है।
(पं पन्नालाल जी को षटखंडागम कंठस्थ था, पर आचार्य श्री ने ब्रह्मचारियों को उनसे तब पढ़वाया, जब उन्होंने 7 प्रतिमायें ले लीं)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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संयम का तात्पर्य वृत व समिति का पालन करना होता है। इसमें मन वचन काय की अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना एंड इन्द्रियों को वश में रखना होता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि वृतियों को आवृत्तियों से नहीं पढना, क्योंकि उसमें संयम का अभाव रहता है। अतः आचार्य श्री ने पंडित जी से ब्रम्हचारियों को तब पढवाया जब 7 प़तिमायें का नियम लिया गया था।