सम्यग्दर्शन

सम्यग्दर्शन को पाने के लिये जो प्रयास किया जाता है उसे चारित्र कहेंगे या सम्यग्दर्शन स्वत: प्रकट होता है ?

बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता ।
सम्यग्दर्शन प्रकट करने के लिये प्रयास तो करना ही होगा ।
पर उसे चारित्र नहीं, पुरूषार्थ कहेंगे, चारित्र तो व्रतों के साथ ही पाँचवें गुणस्थान से शुरू होगा ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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