धार्मिक-क्रियाओं की सार्थकता तभी है जब स्वयं को पहचान जाओ, वरना धर्म कर किसके लिये रहे हो !
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उक्त कथन सत्य है कि धार्मिक क्रियाओं की सार्थकता तभी है जब स्वयं को पहिचान जायेंगे । लेकिन पहिचान नहीं तो धर्म किस बात का है। अतः पहले अपनी आत्मा का ज्ञान होना चाहिए, इसके अतिरिक्त जो धर्म की क़ियाये करते हैं,उस विषय में ज्ञान होना चाहिए कि क्यो और किसलिए करना है,तभी धर्म क़ियायो का वास्तविक लाभ मिलेगा।
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उक्त कथन सत्य है कि धार्मिक क्रियाओं की सार्थकता तभी है जब स्वयं को पहिचान जायेंगे । लेकिन पहिचान नहीं तो धर्म किस बात का है। अतः पहले अपनी आत्मा का ज्ञान होना चाहिए, इसके अतिरिक्त जो धर्म की क़ियाये करते हैं,उस विषय में ज्ञान होना चाहिए कि क्यो और किसलिए करना है,तभी धर्म क़ियायो का वास्तविक लाभ मिलेगा।