अजीवादि का ज्ञान

जीव, संवरादि का ज्ञान करना तो सही है पर अजीव, आश्रवादि का क्यों ?

आचार्य शांतिसागर जी – संवरादि तो रत्न हैं जो आश्रवादि रेत के ढ़ेर में कहीं खो गये हैं, उन रत्नों को खोजने के लिये रेत के ढ़ेर को देखना/समझना पड़ेगा ।

(अरुणा)

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