दोनों हाथ प्रयोग करें तो वंदना,
एक हाथ का प्रयोग थप्पड़ मारना ।
चिंतन
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जैन धर्म में अनेकान्त ही नियत है।
अनेकान्त—एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक धर्मो प़तीत होते हैं।जैसे एक व्यक्ति पिता, पुत्र, भाई आदि अनेक रुपो मे दिखते हैं, इसी तरह प़त्येक वस्तु अनेक धर्मो में समनिवत आते हैं।
अतः दोनो हाथो का प़योग करते हैं तो वंदना होती है जब कि एक हाथ का प़योग करने पर थप्पड़ मारना होता है।
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जैन धर्म में अनेकान्त ही नियत है।
अनेकान्त—एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक धर्मो प़तीत होते हैं।जैसे एक व्यक्ति पिता, पुत्र, भाई आदि अनेक रुपो मे दिखते हैं, इसी तरह प़त्येक वस्तु अनेक धर्मो में समनिवत आते हैं।
अतः दोनो हाथो का प़योग करते हैं तो वंदना होती है जब कि एक हाथ का प़योग करने पर थप्पड़ मारना होता है।