अभिमान / स्वाभिमान

मोह में स्वाभिमान रह नहीं सकता ।

अभिमान को ही स्वाभिमान मान लेते हैं ।
सम्मान की इच्छा रखना अभिमान है,
ऐसे कार्यों से बचना, जिससे अपमानित ना होना पड़े, यह स्वाभिमान है ।

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4 Responses

    1. मोह में adjustments बहुत करने पड़ते हैं,
      छोटों की भी नाज़ायज़ बातें सहनी पड़ती हैं ।

  1. यह कथन बिलकुल सत्य है ।आजकल, अभिमान को स्वाभिमान मानकर जीते हैं, वह अपना सम्मान भी खो देते हैं ।सम्मान को स्वाभिमान न समझें; तभी आपका कल्याण होगा।

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