अभीक्ष्ण-संवेग
दु:खों में संसार से सब डरते हैं, कोरोना में देखा – संसार
निस्सार लगने लगा ।
पर सुख में ?
जब सुख में भी संसार निस्सार लगे तब होगा अभीक्ष्ण-संवेग भाव ।
चिंतन
दु:खों में संसार से सब डरते हैं, कोरोना में देखा – संसार
निस्सार लगने लगा ।
पर सुख में ?
जब सुख में भी संसार निस्सार लगे तब होगा अभीक्ष्ण-संवेग भाव ।
चिंतन
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One Response
अभीक्षण का अर्थ सदा या निरंतर है।
संवेग का तात्पर्य संसार के आवागमन से ड़रते रहना होता है अथवा धर्म के काल में सदा उत्साह रखना होता है, पंचपरमेष्टि से प़ीती रखना एवं धर्म में अनुराग रखना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि दुखों में सब ड़रते है, यह कोराना में देखा गया है, सब निस्सार लगने लगा है, लेकिन सुख में भी संसार निस्सार लगे तब होगा अभीक्षण संवेग भाव।
अतः जीवन में दुःख या सुख में अभीक्षण संवेग रखना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।